असली शमी के पौधे की पहचान क्या है? पूरी जानकारी।
असली शमी (Prosopis cineraria) Vs नकली शमी (Prosopis juliflora)
आजकल कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर Asli Shami Plant और Fake Shami Plant के पौधों को लेकर काफी लेख और वीडियोज आ रहे हैं, अधिकांशतः वीडियो भ्रामक लगते हैं।इनमें सामान्यतः गुलाबी और पीले फूल वाले पौधे को नकली जबकि पीले फूल वाले पौधे को असली शमी कहा जा रहा है तो आज हम सभी इसी संदेहास्पद बातों को स्पष्ट करने जा रहे हैं।
Shami Plant मरुस्थल में पाए जाने वाला एक पौधा है गुलाबी और पीले रंग के फूलों वाले पौधे को Prosopis cineraria कहते हैं जब कि सिर्फ पीले रंग वाले पौधे को Prosopis juliflora कहते हैं वास्तव में यह दोनों पौधे ही Shami Plant की अलग-अलग प्रजाति होती है। दोनों एक ही फैमिली Fabaceae के सदस्य होते हैं।
शमी का पौधा मरुस्थल में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है इसे खेजड़ी,घफ़,जांट/जांटी, सांगरी, छोंकरा, जंड, कांडी, वण्णि, शमी, सुमरी आदि नामो से भी जाना जाता है।
यह भारत के अलावा अफगानिस्तान, बहरीन,ओमान ईरान,सऊदी अरब, यमन और पाकिस्तान आदि देशों में भी पाया जाता है ध्यान रहे हम इस गुलाबी पीले फूलों वाले पौधों की बात कर रहे हैं जिसे आज सोशल मीडिया पर नकली शमी कहा जा रहा है इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यह गर्मियों के मौसम में भी हरा-भरा रहता है।
1899 में पड़ने वाले अकाल, जिसे “छप्पनिया अकाल” भी कहा जाता है दुनिया इस अकाल को “द ग्रेट इंडियन फ़ैमिन 1899” के नाम से जानती है,ऐसा माना जाता है कि इस अकाल में राजस्थान के दस लाख लोग भूख के कारण ही दम तोड़ दिए थे। इस अकाल में यह पौधा राजस्थान के इंसानों के अलावा जानवरों का भी सहारा बना था।
शमी का पौधा जलावन एवं फर्नीचर दोनों के ही काम में आता है राजस्थानी भाषा के कवि कन्हैयालाल सेठिया नेअपनी कविता “ मींझर” में इस वृक्ष की उपयोगिता का अविस्मरणीय वर्णन किए हैं।
1730 ई0 में इसी शमी के वृक्ष को बचाने के लिए अमृता देवी के नेतृत्व में 363 आम लोगों ने जोधपुर के पास एक छोटे से गांव खेजड़ली में प्राण त्याग दिए थे। यह कार्यवाही चिपको आंदोलन का आधार बना था। इन वृक्षों के नीचे अनाजों की पैदावार बहुत अच्छी होती है।भारतीय चित्तीदार लता (The Indian spotted creeper is a small passerine bird) नाम की एक छोटी सी चिड़िया का यह एक प्रमुख आवास है वह इन वृक्षों के छालों में पाए जाने वाले कीट पतंगों को बड़े चाव खाते हैं।
भारतीय ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार यह शमी, शनिवार एवं शनि देव दोनों का प्रतिनिधित्व करता है इसके पूजन को सुख शांति एवं विशेष कर समृद्धि से जोड़ा जाता है। लंका विजय से पूर्व भी प्रभु श्री राम द्वारा इस वृक्ष के ही पूजन का उल्लेख मिलता है। यज्ञ एवं हवन में इसकी लकड़ी का विशेष महत्व होता है ऐसा भी कहा जाता है कि पांडवों ने अपने शास्त्रों को अपने अज्ञातवास के दौरान इसी वृक्ष के ऊपर छुपाए थे।अनेक गुना से शोभित इस वृक्ष को 1983 में राजस्थान का राजकीय वृक्ष घोषित किया गया था।
अब आते हैंअभी कथित पीले फूल वाला Asli Shami Plant के वृक्ष के बारे में इसे Prosopis juliflora (विदेशी कीकर या विदेशी बबूल) भी कहते हैं जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इसका संबंध भारत से तो बिल्कुल भी नहीं है यह स्वाभाविक और स्वतंत्र रूप से मेक्सिको,दक्षिण अमेरिका और कैरेबियाई प्रदेश में पाया जाता है।
भारत में यह एकआक्रामक पौधे (invasive plant) के रूप में जाना जाता हैअर्थात यह किसी स्थान विशेष में स्वाभाविक रूप से पाए जाने वाले या मूल पौधों को नष्ट कर खुद को फैलाने वाला होता है।
आक्रामक पौधे का एक अन्य उदाहरण पार्थेनियम अर्थात गाजर घास या चटक चांदनी है,यह भारत मेंअविश्वसनीय तरीके से फैल चुका है, यह कभी आयातित गेहूं के साथ मिलकर भारत आया था।
ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिशर्स शमी के इस प्रजाति के पौधों को 1920 के आसपास भारत लेकर आए थे उस समय दिल्ली का विकास भारत की राजधानी के तौर पर हो रहा था। इसे कुछ प्रोटेक्टिव एरिया में भी लगाया गया था जैसे केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, इसको पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था, रणथंबोर राष्ट्रीय उद्यान और कुम्भलगढ़ वन्य अभ्यारण्य आदि क्षेत्रों में।
Prosopis juliflora कई प्रजातियों के पौधों को रिप्लेस करअपना अस्तित्व स्थापित कर रहा है जैसे Acacia nilotica (कीकर/बबूल) Mitragyna parvifolia (कदम की एक प्रजाति), Prosopis cineraria, Salvadora oleoides, Salvadora persica, Ziziphus mauritiana इत्यादि।
यह Blackbuck (कृष्णमृग या काला हिरण, जिसे भारतीय ऐंटीलोप भी कहा जाता है) के प्रजातियों के लिए भी हानिकारक पाया गया है कुछ शोध में ऐसा भी पाया गया है कि यह ग्राउंडवाटर को भी दूषित करता है।
इस पीले फूल वाले पौधे का शास्त्रों में पूजन या हवन आदि किसी भी विधान का उल्लेख नहीं मिलता है, अतः अब असली (Asli Shami Plant)और नकली शमी का आप स्वयं परीक्षण करें कि जो स्वाभाविक रूप से भारत में मिलता है वह असली है या वह जो एक विदेशी आक्रामक पौधा है वो असली शमी है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न उत्तर(Frequently Asked Questions Answers):
Shami Plant Vastu Ke Anushaar
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शमी का पौधा किस दिशा में लगाना चाहिए?
वास्तु के अनुसार, शमी का पेड़ घर की दक्षिण दिशा में लगाना चाहिए। यदि दक्षिण दिशा में इसे लगाना संभव न हो तो इसे उत्तर पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। इसे घर के अंदर नहीं, बल्कि खुली जगह जैसे मुख्य दरवाजे, गार्डन, छत या बालकनी में लगाना बेहतर होता है। खासतौर पर, मुख्य द्वार के दाईं तरफ शमी का पौधा लगाना बहुत शुभ माना जाता है।
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गमले में शमी का पौधा लगाना चाहिए या नहीं?
हाँ जी, बिल्कुल लगाना चाहिए, शमी ही क्यों आप कोई भी पौधा अपने घर में, अपने गमलो में लगा सकते हैं याद रखे पेड़ -पौधे हमेशा से हमारे दोस्त रहे हैं और सभी जीव जंतुओं को सदियों से ऑक्सीजन देते आ रहे हैं।वास्तु शास्त्र में शमी के पौधे को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए, घर में शमी का पौधा लगाना बेहद शुभ होता है। ऐसा माना जाता है कि शमी का पौधा सुख, समृद्धि और सौभाग्य को आकर्षित करता है।
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शिवलिंग पर शमी का पत्ता चढ़ना चाहिए या नहीं?
हाँ जी, बिलकुल लगाना चाहिए। शिव पुराण के अनुसार, शमी पत्र या पत्ते भगवान शिव को अति प्रिय है। शिवलिंग पर जल चढ़ाने के साथ में बेल पत्र और शमी पत्र भी चढ़ाने का विधान है इससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है और शनि के दोष से भी मुक्ति मिलती है।
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शमी पत्र/शमी के पत्ते कब नहीं तोड़ना चाहिए?
शमी का पौधा हिंदू धर्म और वास्तु शास्त्र में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।किंतु वास्तु शास्त्र के अनुसार दशहरा, छठ पूजा और शुक्ल पक्ष जैसे विशेष अवसरों पर शमी का पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए। अगर विशेष परिस्थितियो में आपको शमी पत्र तोड़ना ही पड़े तो आप क्षमा प्रार्थना के साथ पत्ते तोड़ सकते हैं। रुद्राभिषेक या महामृत्युंजय जाप आदि पूजन में शमी के पत्तों से महादेव का श्रृंगार और पूजन किया जाता है।
Disclaimer/अस्वीकरण :- “यह लेख लोक/सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। यहां प्रस्तुत की गई जानकारी और तथ्यों की सटीकता या प्रमाणिकता के लिए thecrowpost.com जिम्मेदार नहीं है।”