पिछले कुछ दिनों से न्यूज चैनल और समाचार पत्रों में एक खबर जंगल की आग के जैसे फ़ैल रही थी और वो था “Bhediya Attack” भेड़ियों का हमला, भेड़ियों का आतंक इत्यादि।
इस वर्ष 2024 में भेड़िया अटैक सुर्खियों में रहा विषेश कर उत्तर प्रदेश का बहराइच क्षेत्र इनके आतंक से काँप रहा था वन विभाग की टीम अपने पूरे साजों सामान के साथ भेड़ियों को पकड़ने में लगे थे। उत्तर प्रदेश में भेड़ियों की धर पकड़ चल ही रही थी की बिहार के गया जिले के खिजरसराय नमक स्थान से झुण्ड में भेड़ियों के हमलों ने सुर्खियां बटोरनी शुरू कर दी,और जब तक यह चल ही रहा था की इधर झारखण्ड की राजधानी राँची के बुढ़मू थाना क्षेत्र के बींजा नामक स्थान में भेड़ बकरियाँ चराने गए ग्रामीणों पर भेड़ियों ने हमला कर दिया।
इस समय तो आतंक का माहौल कुछ ऐसा है शाम ढलते ग्रामीण क्षेत्रो में लोग कुत्तों को देख के भी डर जा रहे हैं।आखिर ऐसा क्या हो रहा है जो भेड़िया या अन्य जंगली जानवर जंगलों को छोड़ के गांव की ओर आ रहे हैं?
अब ये मत कहना की “गीदड़ की जब मौत आती है तो वो शहर की तरफ भागता है”। इस प्रश्न का उत्तर तो हम सब जानते है क्यूँकि इन घटनाओं के लिए हर तरह से हम लोग और सिर्फ हम लोग ही ज़िम्मेवार हैं। हम अपने खेतों के लिए घरों के लिए उनका घर छीन रहे वनो को काट रहें तो फिर आखिर ये जायेंगे कहाँ और खाएंगे क्या?ये धरती जितनी हमारी हैं उतनी इन बेजुबानों की भी है और इस धरती के संसाधनों पे जितना अधिकार हमारा है उतना उनका भी है।
चलिए आज हम इन्हीं भेड़ियों के बारे में बात करते है की ये क्या है कहाँ है कितने है इत्यादि।
भेड़िया कुर्तों की प्रजाति का एक मांसाहारी जंगली जानवर है इसका वैज्ञानिक नाम “Canis lupus” है और इसका पूरा वर्गीकरण इस प्रकार है :-
- Kingdom: Animalia
- Phylum: Chordata
- Class: Mammalia
- Order: Carnivora
- Family: Canidae
- Genus: Canis
- Species: C. lupus
- Indian species : Canis lupus pallipes
- Species: C. lupus
- Genus: Canis
- Family: Canidae
- Order: Carnivora
- Class: Mammalia
- Phylum: Chordata
भेड़िये सामान्यतः 25 से 30 के झुण्ड या समूह में रहते हैं, जिसे “पैक” कहा जाता है। और यह समूह मिलकर शिकार करता है। पैक में एक मुखिया या या लीडर होता है, जिसे अल्फा कहा जाता है, और यह पूरे समूह का नेतृत्व शिकार आदि कामो में भली भांति करता है। ये आमतौर पर ठंढे पहाड़ी क्षेत्रों में ,हर प्रकार के जंगलों में , घास के मैदानों में और रेगिस्तानों में भी ये पाए जाते है। ये मुख्यतः अपने तेज सूंघने की शक्ति और समूह में रहना और समूह में शिकार करने की लिए विख्यात है।
भेड़िये मांसाहारी होते हैं और छोटे से बड़े जानवरों का शिकार करते हैं, जैसे हिरण, खरगोश और भेड़-बकरी। जब शिकार बड़ा होता है, तो वे समूह में मिलकर हमला करते हैं।
इनके पास तेज़ सूंघने की क्षमता होती है, जिससे वे शिकार को दूर से पहचान सकते हैं। उनकी सुनने की क्षमता भी बहुत अच्छी होती है।
भेड़िये विभिन्न प्रकार से आपस में संवाद करते हैं, जैसे कि हुंकारना (howling)। यह हुंकारना समूह के अन्य सदस्यों को बुलाने, इलाके की पहचान करने, और दुश्मनों को डराने के लिए होता है। इनका जीवनकाल लगभग 6 से 8 साल का होता है जिसे अगर संरक्षित कर के रखा जाए तो यह 10 से 12 साल तक जी सकते हैं।
उपस्थिति के आधार से विश्व में मुख्यतः तीन प्रकार में भेडियो की प्रजाति पायी जाती है जो इस प्रकार है :-
- ग्रे भेड़िया (The gray wolf)
- लाल भेड़िया (The red wolf)
- इथियोपियाई या एबिसिनियन भेड़िया (The Ethiopian wolf)
- ग्रे भेड़िया (The gray wolf) :- ग्रे भेड़िया एक समय में पूरे यूरोप , एशिया , उत्तरी अमेरिका , उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते थे।
वर्त्तमान समय में इनकी 38 उपप्रजातिया ज्ञात है।भारत में पाया जाने वाला भेड़िया भी इसी प्रजाति से सम्बन्ध रखता है। ये खरगोश , हिरण जंगली गाय भैसो का भी शिकार अपने समूहों के साथ कर लेते हैं।
- लाल भेड़िया (The red wolf) :- लाल भेड़िये मूलतः अटलांटिक महासागर से लेकर टेक्सास के मध्य क्षेत्र ,ओक्लाहोमा के दक्षिण पूर्वी और दक्षिण-पश्चिमी इलिनोइस तक और उत्तर में ओहियो नदी घाटी से पेंसिल्वेनिया के उत्तरी क्षेत्र , दक्षिणी न्यूयॉर्क और कनाडा में दक्षिणी ओंटारियो से लेकर मैक्सिको की खाड़ी तक पूरे संयुक्त राज्य अमेरिका में फैले हुए है।
- इथियोपियाई या एबिसिनियन भेड़िया (The Ethiopian wolf) :- यह इथोपियाई हाइलैंड्स का मूल निवासी है इसे इथोपिया के दक्षिण पूर्व क्षेत्रो में घोड़ा सियार के नाम से भी जाना जाता है इथियोपियाई भेड़िये को IUCN द्वारा लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और इनका संरक्षण ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के इथियोपियाई भेड़िया संरक्षण कार्यक्रम द्वारा किया जाता है।
भारत में भेड़ियों की दो उप -प्रजातियां पाई जाती हैं:-
- भूरा भेड़िया या ग्रे वुल्फ़: यह प्रायद्वीपीय क्षेत्रो में पाया जाता है।
- हिमालयी या तिब्बती भेड़िया : इस प्रकार के भेड़िये उत्तरी क्षेत्रो में पाए जाते है।
अगर उपलब्ध स्रोतों को देखा जाये तो भारत में लगभग तीन हजार के आस पास भेड़िया या इंडियन ग्रे वुल्फ (Canis lupus pallipes) बचे हैं और दुनिया में कई अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों की तरह ये भी अपने आवास के छीन जाने का नुकसान को झेल रही है।
शेर या बाघ के विपरीत भेड़िया को हम मूलतः जंगलों के भीतर का प्राणी नहीं कह सकते है क्यूँकि इनको अपने झुण्ड के साथ विचरण करने, और भोजन के लिए छोटे जीवो जैसे ख़रगोश जंगली मुर्गी आदि जीवो के शिकार के लिए या फिर प्रजनन हेतु विशाल क्षेत्रों की आवश्यकता होती है। कृषि योग्य भूमि हेतु किसान जंगलो का अतिक्रमण कर रहे है या फिर मैदानी क्षेत्रो का अतिक्रमण है जिस से भेडियो को अपने जीवन यापन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
सरकार की वेस्टलैंड एटलस ऑफ इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, भेड़ियों के मूल निवास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बंजर भूमि में है लेकिन सरकार इन भूमियों पर सौर और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं, कार्बन पृथक्करण के लिए वृक्षारोपण अभियान और अन्य ऐसी ही विकासात्मक गतिविधियों को प्राथमिकता से शामिल कर रही है जिनसे भी इनका मूल आवास क्षिन जा रहा है।
भेड़िया भोजन की तलाश में अक्सर निकटवर्ती गाँवों में घुस कर उनके भेड़ बकरियाँ मुर्गियाँ आदि का शिकार करते है अपने पशुओं के बचाव में या जागरूकता की कमी से अक्सर वे इनको मार भी डालते है। जिनसे इनकी आबादी में लगातार गिरावट आयी है। परिणाम स्वरुप सरकार ने इसे ” लुप्तप्राय प्रजाति ” घोषित करते हुए इसे “वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची 1” में शामिल कर लिया है।
क्या है वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 ?
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके अनुरूप उनके आवासों के प्रबंधन, जंगली जानवरों, पौधों तथा उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिये एक कानूनी स्वरूप उपलब्ध कराता है।
यह अधिनियम वैसे पौधों और जानवरों की अनुसूचियों को भी सूचीबद्ध करता है जिन पर सरकार द्वारा अलग-अलग स्तर की सुविधायें और सुरक्षा तथा निगरानी प्रदान की जाती है।
1972 का यह वन्यजीव अधिनियम, CITES (The Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora / वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन) इसका स्वरुप 1963 में आईयूसीएन/IUCN (International Union for Conservation of Nature / विश्व संरक्षण संघ) के सदस्यों की बैठक में अपनाए गए प्रस्ताव के आधार पर तैयार किया गया था, में भारत के प्रवेश को सरल बना दिया था।
पहले जम्मू-कश्मीर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम -1972 के दायरे में नहीं आता था किन्तु पुनर्गठन अधिनियम के परिणामस्वरूप अब भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम जम्मू-कश्मीर पर भी लागू होता है।
क्या है वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची 1?
इस अनुसूची में उन लुप्तप्राय प्रजातियों को शामिल किया जाता है जिन्हें सर्वाधिक संरक्षण की आवश्यकता होती है एवं इस अनुसूची केअंतर्गत किसी भी कानून के उलंघन की स्थिति में सम्बंधित व्यक्ति को सबसे कठोर दंड दिया जा सकता है।
इस अनुसूची में शामिल प्रजातियों का पूरे भारत में शिकार करने पर प्रतिबंध किया जाता है, सिवाय ऐसी परिस्थिति की जब वह प्रजाति किसी भी रूप में मानव जीवन के लिये खतरा न बन जाए।
अनुसूची 1 के तहत सूचीबद्ध कुछ जानवरों में काला हिरण , स्नो लेपर्ड, हिमालयी भालू ,एशियाई चीता, चिंकारा , लंगूर ,और भेड़िया आदि शामिल हैं।
देश का एकमात्र भेड़िया संरक्षण स्थल “महुआडांड़ वन्यजीव अभयारण्य (Mahuadanr Wildlife Sanctuary)”
भारत का एकमात्र भेड़िया संरक्षण स्थल झारखण्ड के लातेहार जिले के महुआडांड़ में स्थित है और इसे वर्तमान समय तक भारत का एकमात्र भेड़िया संरक्षण स्थल माना जाता है। यह महुआडांड़ भेड़िया अभयारण्य के नाम से जाना जाता है जो इस लुप्तप्राय प्रजाति के संरक्षण के लिए समर्पित भारत का एकमात्र अभयारण्य है।
महुआडांड़ भेड़िया अभयारण्य की स्थापना: भारतीय वन सेवा के अधिकारी श्री सुरेश प्रसाद शाही के भेड़ियों के प्रति अभूतपूर्व समर्पण की बदौलत बिहार सरकार ने 23 जून 1976 को महुआडांड़ को अभयारण्य घोषित किया और इसका प्रशासन पलामू टाइगर रिजर्व या बेतला राष्ट्रीय उद्यान द्वारा किया जाता है। जो एक संरक्षित वन क्षेत्र प्रदान करता है जहाँ भेड़िये मानव अतिक्रमण और उत्पीड़न से दूर रह सकते हैं। उनके काम ने भारत में भेड़ियों की आबादी को स्थिर करने और बढ़ाने के उद्देश्य से चल रहे संरक्षण प्रयासों की नींव रखी।
भेड़ियों के अलावा महुआडांड़ भेड़िया अभयारण्य में खरगोश, नेवला, हिरण, गिलहरी सहित लगभग 27 स्तनधारी, 19 के आसपास पक्षियोँ की प्रजातियाँ लगभग 30 तितलियों की प्रजातियाँ 8 उभयचर और लगभग 18 सरीसृपो की प्रजातियाँ रहती है। साल, बेल, केंद,धौरा,खैर,करौंधा,पियार,सलाई,बेर इत्यादि महत्वपूर्ण वनस्पतियाँ इस क्षेत्र को कवर करती हैं।
महुआडांड़ भेड़िया अभयारण्य झारखंड के लातेहार जिले के चेचरी घाटी के महुआडांड़ गांव में स्थित है, जो राज्य की राजधानी रांची से लगभग 200 किलोमीटर दूर है।पूर्व में नेतरहाट पहाड़ियाँ, पश्चिम में बुरहा पहाड़ियाँ, उत्तर में अक्सी पहाड़ियाँ और दक्षिण में चंपा पहाड़ियाँ चेचरी घाटी को घेरती हैं, जो इसे राज्य की सबसे खूबसूरत घाटियों में से एक बनाती हैं। महुआडांड़ में 25 संरक्षित वन हैं जो छत्तीसगढ़ राज्य के साथ सीमा साझा करते हैं।
भारत में यह प्रसिद्ध भेड़िया अभयारण्य लगभग 1968.5 फीट की ऊँचाई पर स्थित है और 63.256 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह बुरहा नदी द्वारा सींचित क्षेत्र है जो अंततः अस्की नदी से मिलती है और कुजरुम में उत्तरी कोयल नदी में प्रवेश करती है।
1960 के दशक में, श्री शाही ने पहचाना कि भेड़ियों के पसंदीदा आवास-झाड़ियाँ और खुले जंगल तेजी से कृषि भूमि में परिवर्तित हो रहे थे। अपने समय के अन्य वन अधिकारियों के विपरीत, वे भेड़ियों के अस्तित्व के लिए इन खुले प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों के महत्व को समझते थे। श्री शाही ने भेड़ियों और उनके आवास की रक्षा करने वाले अभयारण्य बनाने के लिए वर्षों तक पैरवी की। भारतीय भेड़ियों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने में और उन्हें संरक्षित करने में उनके प्रयास महत्वपूर्ण थे।
विश्व के विभिन्न सभ्यता और संस्कृतिओं में भेड़ियों को अलग अलग प्रतीकों के रूप में देखा गया है।
प्राचीन समय से ही भेड़िया कई संस्कृतियों में विभिन्न प्रतीकों और अर्थों से जुड़ा हुआ है। इसे अलग-अलग संदर्भों में विभिन्न प्रतीकात्मक गुणों से जोड़ा जाता है। भेड़िया को अक्सर साहसी और निडर प्राणी के रूप में देखा जाता है। चूँकि यह अपने परिवार या समूह का नेतृत्व करने की विशेष क्षमता रखता है, इसलिए इसे नेतृत्व और मार्गदर्शन का प्रतीक के रूप में माना जाता है।
यह एक ऐसा प्राणी है जो स्वतंत्रता से रहना पसंद करता है इसलिए यह स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।चूँकि ये समूह में रहते हैं और एक दूसरे की रक्षा करता है। इसीलिए भेड़िये को सामुदायिक सहयोग और पारिवारिक सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है।कई प्राचीन संस्कृतियों में भेड़ियों को रहस्यमय शक्तियों का प्रतीक माना गया है। यह अक्सर आत्माओं, देवताओं और जादुई शक्तियों से जुड़ा होता है, जैसे कि नॉर्स के पौराणिक कथाओं में फेनरिस जो एक राक्षसी भेड़िया होता है।
भेड़िया को मृत्यु और पुनर्जन्म का भी प्रतीक माना जाता है। विशेष रूप से मिस्र और ग्रीक मिथकों में, इसे मृत्यु और आत्माओं के मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता है। मिस्र के देवता अनूबिस का भेड़िये जैसा सिर था जो मृत्यु के बाद आत्माओं की रक्षा और मार्गदर्शन करता है।
मिथक और कहानियां :
इन भेड़ियों को लेकर दुनियाभर में कई तरह के मिथक और कहानियां भी प्रचलित हैं। अलग-अलग संस्कृतियों में भेड़ियों को कभी डरावना और खतरनाक, तो कभी रहस्यमय और ताकतवर प्राणी माना जाता है। यहां भेड़िया और उससे जुड़े कुछ प्रसिद्ध मिथकों के बारे में जानकारी दी जा रही है:
वेरवुल्फ (Werewolf):
यह पश्चिमी देशों में बहुत ही प्रसिद्ध मिथक है। इसमें इंसान को रात में, खासकर पूर्णिमा की रात को, भेड़िया बनने की शक्ति या शाप होता है। ये प्राणी इंसानी रूप में आम जीवन जीते हैं, लेकिन जब भेड़िया बनते हैं तो बेहद हिंसक हो जाते हैं।
रूस में भेड़िये को पवित्र और बुद्धिमान माना जाता था। प्राचीन रूसी लोककथाओं में भेड़ियों को जादुई शक्तियों से युक्त और रहस्यमय प्राणी माना जाता है, जो आत्माओं की रक्षा करते हैं या संकट में फंसे लोगों की मदद करते हैं।
प्राचीन मिस्र और ग्रीस में भेड़िये को मृत्यु और अंधकार से जोड़ा गया है। मिस्र में भगवान अनूबिस (Anubis), जिनका सिर भेड़िया जैसा होता था, को मृत्यु का देवता माना जाता था। ग्रीक मिथक में भी भेड़ियों को नरक के दरवाजे का संरक्षक माना गया है ।
नॉर्स मिथक में फेनरिस (Fenrir) नाम का एक विशालकाय भेड़िया था, जिसे बहुत ताकतवर और विनाशकारी माना गया है । यह भेड़िया राग्नारोक (Ragnarök) के समय देवताओं को खत्म करने वाला माना गया था।
भेड़िया को कई साहित्यिक और सिनेमाई कहानियों में शामिल किया गया है।अभी हाल ही में वरुण धवन अभिनीत फिल्म भेड़िया एक अच्छा उदहारण है।
अब वापिस आते है अपने वास्तविक विषयवस्तु पर झारखंड का एकमात्र भेड़िया संरक्षण स्थल महुआडांड़ वन्यजीव अभयारण्य
यदि आप यहाँ घूमने आना चाहते है तो चलिए हम आपको इसका भी पूर्ण विवरण आपको देते हैं।
यहाँ घूमने का सबसे अच्छा समय :-
महुआडांड़ भेड़िया अभयारण्य में घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से जून तक है। हर साल, भेड़िये अक्टूबर से नवंबर और फरवरी से मार्च तक अभयारण्य के वन क्षेत्र में बनाए गए प्रजनन स्थलों पर जाते हैं। मानसून के दौरान कच्ची सड़कों पर परिचालन में आने वाली परेशानियों के वजह से अभयारण्य को बंद रखा जाता है।
क्षेत्र का मौसम कैसा है?
इस क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय वातावरण है, जहाँ गर्मी के महीने मार्च से जून तक होते हैं और तापमान 35 से 40 डिग्री सेल्सियस तक होता है। अप्रैल और मई सबसे गर्म महीने होते हैं।
मानसून के मौसम में, जुलाई से अगस्त तक, अभयारण्य में मामूली बारिश होती है। सर्दियों का मौसम नवंबर से फरवरी तक रहता है, जिसमें तापमान 10 से 15 डिग्री सेल्सियस तक होता है। सबसे ठंडे महीने दिसंबर और जनवरी हैं।
महुआडांड़ भेड़िया अभयारण्य कैसे पहुँचें?
ट्रेन द्वारा
बरवाडीह जंक्शन (Barwadih / BRWD) महुआडांड़ भेड़िया अभयारण्य का निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो महुआडांड़ भेड़िया अभयारण्य से लगभग 95 किलोमीटर दूर है। यह स्टेशन देश की राजधानी दिल्ली, कोलकाता और पटना और राँची सहित प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
मुंबई, चेन्नई और बैंगलोर जैसे अन्य प्रमुख शहरों से यात्रा करने वाले पर्यटक रांची जंक्शन (Ranchi /RNC) और हटिया रेलवे स्टेशन (Hatia / HTE) के लिए ट्रेन ले सकते हैं, जो दोनों लगभग 195 किलोमीटर दूर हैं। दोनों स्टेशन झारखण्ड की राजधानी रांची में ही स्थित है। किसी भी स्टेशन पर पहुँचने के बाद महुआडांड़ भेड़िया अभयारण्य के लिए एक टैक्सी/ ऑटो इत्यादि बुक कर सकते है ।
हवाई मार्ग
यदि हवाई मार्ग से यहाँ आना चाहते हो तो इसके लिए निकटतम हवाई अड्डा रांची में भगवान बिरसा मुंडा हवाई अड्डा है, जो महुआडांड़ भेड़िया अभयारण्य से लगभग 200 किलोमीटर दूर है, जबकि निकटतम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा कोलकाता में नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो लगभग 600 किलोमीटर दूर है। पर्यटक रांची के बिरसा मुंडा हवाई अड्डे से महुआडांड़ भेड़िया अभयारण्य के लिए अपने जरुरत के अनुसार कोई भी वाहन बुक कर सकते हैं। कोलकाता से राँची तक के लिए रात्री और दिन के बस सेवा और रेल सेवा दोनों उपलब्ध है।
सड़क मार्ग
रांची से लातेहार बस स्टेशन तक बसें जाती हैं, जहाँ से आपको अभयारण्य तक ले जाने के लिए जरुरत अनुसार वाहन किराए पर ली जा सकती हैं।
ठहरने की जगहें :-
महुआडांड़ और असकी दोनों में वन विश्राम गृह हैं। हालाँकि, नेतरहाट में रहना आदर्श विकल्प है क्योंकि यहाँ बहुत सारे होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध है।
पर्यटन में बरतने वाली कुछ सावधानियाँ :-
हालाँकि यह क्षेत्र जंगलों और पहाड़ों सी घिरा हुआ है इस लिए कुछ सावधानियाँ भी बरतनी चाहिए फिर चाहे आप स्थानीय पर्यटक कही बाहर से घूमने आ रहे हो।आप शाम 4 बजे के बाद या शाम ढलने के बाद बाहर जाने से बचें।हमेशा समूह में जाएँ और अकेले कहीं घूमने जाने से बचें।जाने का सबसे अच्छा समय सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे के बीच है।दिसंबर से फरवरी तक के पीक सीज़न के दौरान जाना ज़्यादा सुरक्षित है क्यूंकि इस समय इन क्षेत्रों में बहुत भीड़ होती है।पानी की बोतलें, दवाइयाँ, और जरुरी सामान साथ लेकर आना चाहिए।
कोशिश करे स्थानीय पुलिस या प्रशासन का मोबाइल नंबर साथ रखे एवं फ़ोन चार्ज करने की व्यवस्था जैसे पावर बैंक आदि साथ में रखना उचित कदम होगा।
आप विशेष जानकारी के लिए झारखण्ड सरकार के कार्यालय से भी संपर्क कर सकते है।
Van Bhawan, Doranda,
Ranchi Jharkhand-834002
Email-Id: cf-wpranchi[at]gov[dot]in
या विजिट करे : – https://forest.jharkhand.gov.in/
विशेष नोट :- जंगलो में आग ,अवैध वृक्षों की कटाई ,अवैध निर्माण ,जानवरो या पक्षियों का अवैध शिकार या जंगल में अन्य किसी भी गैर कानूनी क्रियाकलापों की जानकारी आप राज्य स्तरीय टोल फ्री नंबर 18008892633 या देश/ नेशनल लेवल के टोल फ्री नंबर1800119334 पर आप दे सकते है।
(स्रोत : झारखण्ड सरकार के वेबसाइट से साभार )